जब धरती पर अधर्म और अत्याचार का अंधकार फैला हुआ था, तब अच्छाई और सत्य की एक अद्वितीय विजय हुई—एक ऐसी विजय जिसने सदा के लिए इतिहास में अपना स्थान बना लिया। यह वह दिन था जिसे हम आज विजयदशमी के रूप में जानते हैं, जब अच्छाई ने बुराई को पराजित किया और एक नई रोशनी ने संसार को प्रकाशित किया।
विजयदशमी की महागाथा हमें भगवान राम और रावण के महायुद्ध की याद दिलाती है। रावण, जो दस सिरों के साथ बुराई और अहंकार का प्रतीक था, ने सीता का अपहरण कर लिया। लेकिन भगवान राम, सत्य और धर्म के प्रतीक, ने अपने साहस और तप से उस बुराई को समाप्त कर दिया। नौ दिनों तक चला युद्ध तब समाप्त हुआ जब दसवें दिन भगवान राम ने रावण को परास्त कर बुराई के अंत का संकेत दिया। यही वह दिन था, जिसे विजयदशमी कहा गया, जब अच्छाई ने अपनी अटूट शक्ति का प्रमाण दिया।
लेकिन विजयदशमी की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। देवी दुर्गा की विजय का भी यह दिन प्रतीक है, जिन्होंने महिषासुर जैसे राक्षस को पराजित किया था। यह अद्भुत योद्धा देवी, जो सभी देवताओं की शक्तियों से सुसज्जित थीं, ने नौ दिनों तक लगातार युद्ध किया और दसवें दिन महिषासुर का वध कर धरती और स्वर्ग को मुक्त किया। उनकी विजय न केवल शौर्य का प्रतीक है, बल्कि यह हमें बताती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः धर्म और न्याय की जीत होती है।
विजयदशमी का त्योहार हर साल हमें इन पौराणिक गाथाओं की याद दिलाता है और यह प्रेरित करता है कि जीवन में कितना भी संघर्ष क्यों न हो, सत्य और अच्छाई का मार्ग ही सबसे श्रेष्ठ है। इस दिन रावण के विशालकाय पुतले जलाए जाते हैं, जो हमारी आंतरिक बुराइयों—अहंकार, क्रोध, और अधर्म—के अंत का प्रतीक है। देवी दुर्गा की मूर्तियों को जलधारा में विसर्जित कर हम यह संकल्प लेते हैं कि हर वर्ष हम अपने भीतर की नकारात्मकता को त्याग देंगे और नया जीवन आरंभ करेंगे।
विजयदशमी सिर्फ एक ऐतिहासिक पर्व नहीं है, यह अच्छाई और बुराई के बीच शाश्वत संघर्ष की महागाथा है। यह वह दिन है जब हम अपने भीतर के रावण को परास्त करते हैं और देवी दुर्गा के साहस से प्रेरणा लेकर जीवन में सत्य और धर्म की जीत की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
आइए, इस विजयदशमी पर हम अपने भीतर की अच्छाई को फिर से जागृत करें, और जीवन में हर चुनौती के आगे अडिग रहते हुए विजय प्राप्त करें। विजयदशमी का यह महापर्व हमें सिखाता है कि अंततः अच्छाई की जीत निश्चित है, चाहे कितनी भी बड़ी बुराई का सामना क्यों न करना पड़े।
जय विजयदशमी!