धारावी के दिल में बसी कुम्भारवाड़ा की कॉलोनी, जहाँ मिट्टी से कला का जादू पैदा होता है, आज एक बड़ी चुनौती का सामना कर रही है। यहां के कुम्भार, जो सदियों से अपनी पारंपरिक कला का अभ्यास कर रहे हैं, अब राज्य के नेतृत्व में चल रहे झुग्गी-झोपड़ी पुनर्विकास के खतरे में हैं। यह केवल उनकी कुम्भारी कला को ही नहीं, बल्कि इस समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित कर रहा है।
कुम्भारवाड़ा में लगभग 500 परिवार रहते हैं, जो मिट्टी के दीपक, सजावटी बर्तन और अन्य हस्तशिल्प बनाते हैं। ये कुम्भार सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि अपने काम के प्रति एक गहरा लगाव रखते हैं। वे स्थानीय मिट्टी का उपयोग करते हैं, जो न केवल उनके काम को खास बनाता है, बल्कि उनकी संस्कृति की गहराई को भी दर्शाता है। समय के साथ, उन्होंने आधुनिक तकनीकों को भी अपनाया है, जैसे कि इलेक्ट्रिक कुम्भारी पहिये, ताकि वे अधिक कुशलता से काम कर सकें।
लेकिन हाल के दिनों में, महाराष्ट्र सरकार के पुनर्विकास के योजनाओं ने उनकी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इन योजनाओं का उद्देश्य धारावी को एक आधुनिक शहरी केंद्र में बदलना है। लेकिन कुम्भारों के लिए, यह परिवर्तन उनके अस्तित्व पर संकट ला रहा है। योजनाएं उनके सामुदायिक कार्यशालाओं को समाप्त कर सकती हैं, जिससे वे एक-दूसरे से बिछड़ जाएंगे। ऐसे में, परंपराओं की विरासत खतरे में है, और युवा पीढ़ी अधिक स्थिर आय की खोज में कुम्भारी से दूर जा रही है।
शहरीकरण और यांत्रिकरण ने भी कुम्भारों की आजीविका पर दबाव बढ़ा दिया है। बढ़ती लागत और सामूहिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा के चलते, पारंपरिक कुम्भारों के लिए जीना मुश्किल हो गया है। कई युवा अब अधिक लाभदायक पेशों की ओर जा रहे हैं, जो इस कला के भविष्य को और भी कठिन बना रहा है।
कुम्भारवाड़ा के कुम्भार आज एक मुश्किल समय में खड़े हैं, जहाँ उन्हें अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने और आधुनिकता की आवश्यकताओं के साथ तालमेल बिठाने के बीच संतुलन बनाना है। कुछ कुम्भार नए डिज़ाइन और बाजारों के साथ प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन यांत्रिकरण के डर से उनकी पारंपरिक कला के अनोखे गुणों का खो जाना भी एक चिंता का विषय है।
आखिरकार, धारावी के कुम्भारों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि पुनर्विकास की प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है और क्या उनकी आवाज़ें सुनाई जाती हैं। यदि उनके हितों को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनाई जाती हैं, तो यह जीवंत समुदाय अपनी कला और संस्कृति को बचाए रखने में सक्षम हो सकता है। कुम्भारवाड़ा की कहानी केवल मिट्टी की कला की नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत की है जो समय के साथ-साथ अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रही है।