Sunday, June 8, 2025
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“दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का सफर और वैश्विक बदलाव की कहानी।”

साल 1999। दुनिया आर्थिक संकट की मार झेल रही थी। तमाम देशों के नेता इस सोच में डूबे थे कि कैसे इन चुनौतियों से निपटा जाए। तभी 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेता एक मंच पर आए और ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) की नींव रखी गई।

शुरुआत में, यह मंच आर्थिक स्थिरता और वित्तीय संकटों के समाधान पर केंद्रित था। लेकिन समय के साथ, इसकी भूमिका बदलने लगी। जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट, और डिजिटल दुनिया में हो रहे बदलाव G20 के एजेंडे का हिस्सा बन गए।

एक ताकतवर गठबंधन

G20 में 19 देश और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं, और अब अफ्रीकी यूनियन के जुड़ने से इसकी कुल सदस्य संख्या 21 हो गई है। अमेरिका और जर्मनी जैसे स्थापित शक्तियों से लेकर भारत और ब्राजील जैसे उभरते देशों तक, यह विविध अर्थव्यवस्थाओं का संगम है।
इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका शामिल हैं। EU और AU जैसे क्षेत्रीय संगठनों को शामिल करना G20 के व्यापक दृष्टिकोण और ग्लोबल साउथ की आवाज़ों को सुनने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

एकजुटता का संगम
यह मंच, जिसमें अमेरिका, भारत, चीन, जर्मनी, और जापान जैसे देशों के साथ यूरोपीय संघ और अब अफ्रीकी यूनियन जैसे क्षेत्रीय संगठन भी शामिल हैं, विविधता का प्रतीक है। यहां उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाएं एक साथ बैठकर दुनिया की सबसे जटिल समस्याओं का समाधान ढूंढती हैं।

1999 में, जब दुनिया वित्तीय संकटों से जूझ रही थी, तब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को एकजुट करके ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करना था। दो दशकों बाद, G20 एक मजबूत मंच बन गया है, जो वैश्विक GDP का 85%, अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75%, और दुनिया की दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। 2023 में अफ्रीकी यूनियन (AU) को शामिल करने के बाद इसकी समावेशिता बढ़ी, जो वैश्विक शासन की बढ़ती आपसी निर्भरता को दर्शाती है।

एक ताकतवर गठबंधन

G20 में 19 देश और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं, और अब अफ्रीकी यूनियन के जुड़ने से इसकी कुल सदस्य संख्या 21 हो गई है। अमेरिका और जर्मनी जैसे स्थापित शक्तियों से लेकर भारत और ब्राजील जैसे उभरते देशों तक, यह विविध अर्थव्यवस्थाओं का संगम है।
इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका शामिल हैं। EU और AU जैसे क्षेत्रीय संगठनों को शामिल करना G20 के व्यापक दृष्टिकोण और ग्लोबल साउथ की आवाज़ों को सुनने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

बदलती प्राथमिकताएं: अर्थशास्त्र से सतत विकास तक

G20 की शुरुआत आर्थिक स्थिरता और वित्तीय नीति पर ध्यान केंद्रित करने के साथ हुई थी। लेकिन समय के साथ, इसका एजेंडा जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट, डिजिटल परिवर्तन, और सतत विकास जैसे मुद्दों तक बढ़ गया।

2024 के रियो डी जनेरियो शिखर सम्मेलन में, नेताओं ने आर्थिक विकास के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा, प्रौद्योगिकी की समान पहुंच, और जलवायु अनुकूलन जैसे मुद्दों पर चर्चा की। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय सहयोग पर जोर दिया, जबकि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नैतिक और समावेशी उपयोग को रेखांकित किया।

G20 की संरचना: निर्णय कैसे होते हैं?

G20 के पास कोई स्थायी मुख्यालय या सचिवालय नहीं है। इसकी नेतृत्व हर साल बदलता है, और प्रत्येक अध्यक्षता मंच की प्राथमिकताओं को तय करती है।
यह दो मुख्य ट्रैक्स में कार्य करता है:

  1. वित्त ट्रैक:
    इसमें वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर शामिल होते हैं। यह ट्रैक आर्थिक स्थिरता, वित्तीय नीति, और वित्तीय समावेशन जैसे मुद्दों पर काम करता है।
  2. शेरपा ट्रैक:
    यह सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देता है, जैसे कृषि, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा, और स्वास्थ्य। राष्ट्रीय नेताओं के प्रतिनिधि, जिन्हें शेरपा कहा जाता है, शिखर सम्मेलन से पहले सहमति बनाने का काम करते हैं।

हालिया विकास: 2024 रियो शिखर सम्मेलन

रियो में, G20 ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा की क्षमता को तीन गुना करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने का वादा किया। हालांकि, कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर सहमति बनाने में मंच असफल रहा।

उपलब्धियां और चुनौतियां

G20 ने 2008 के वित्तीय संकट में $4 ट्रिलियन का प्रावधान कर मंदी को रोकने में मदद की। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन असमानता जैसे मुद्दों पर इसकी विफलता स्पष्ट थी।

भविष्य की चुनौतियां और अवसर

G20 को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए इन मुद्दों पर काम करना होगा:

  1. प्रतिनिधित्व को मजबूत करना
  2. सहमति बनाना
  3. ठोस परिणाम देना

सपने और चुनौतियां
हर साल एक नई अध्यक्षता मंच की प्राथमिकताएं तय करती है। भारत ने 2023 में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और जलवायु वित्त पर जोर दिया, तो ब्राजील 2024 में सामाजिक समावेश और विकासशील देशों की आवाज़ उठाने पर केंद्रित है।

लेकिन इतनी विविधताओं के साथ सहमति बनाना आसान नहीं। जलवायु संकट जैसे मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद अक्सर प्रगति में बाधा डालते हैं।

उम्मीदों की रोशनी
G20 की सफलता की कहानियां भी कम नहीं। 2008 के वित्तीय संकट में $4 ट्रिलियन की मदद से उसने दुनिया को बड़ी मंदी से बचाया। 2024 में, रियो शिखर सम्मेलन में, अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने और वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए नए संकल्प लिए गए।

आगे का रास्ता
आज G20 का सफर केवल आर्थिक नीतियों तक सीमित नहीं। इसके निर्णय छोटे किसानों, व्यापारियों, और छात्रों की ज़िंदगी में बदलाव ला रहे हैं। लेकिन अब यह मंच खुद से एक बड़ा सवाल पूछ रहा है—क्या वह वैश्विक जरूरतों और अपेक्षाओं पर खरा उतर पा रहा है?

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