साल 1999। दुनिया आर्थिक संकट की मार झेल रही थी। तमाम देशों के नेता इस सोच में डूबे थे कि कैसे इन चुनौतियों से निपटा जाए। तभी 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेता एक मंच पर आए और ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20) की नींव रखी गई।
शुरुआत में, यह मंच आर्थिक स्थिरता और वित्तीय संकटों के समाधान पर केंद्रित था। लेकिन समय के साथ, इसकी भूमिका बदलने लगी। जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट, और डिजिटल दुनिया में हो रहे बदलाव G20 के एजेंडे का हिस्सा बन गए।
एक ताकतवर गठबंधन
G20 में 19 देश और यूरोपीय संघ (EU) शामिल हैं, और अब अफ्रीकी यूनियन के जुड़ने से इसकी कुल सदस्य संख्या 21 हो गई है। अमेरिका और जर्मनी जैसे स्थापित शक्तियों से लेकर भारत और ब्राजील जैसे उभरते देशों तक, यह विविध अर्थव्यवस्थाओं का संगम है।
इसमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका शामिल हैं। EU और AU जैसे क्षेत्रीय संगठनों को शामिल करना G20 के व्यापक दृष्टिकोण और ग्लोबल साउथ की आवाज़ों को सुनने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
एकजुटता का संगम
यह मंच, जिसमें अमेरिका, भारत, चीन, जर्मनी, और जापान जैसे देशों के साथ यूरोपीय संघ और अब अफ्रीकी यूनियन जैसे क्षेत्रीय संगठन भी शामिल हैं, विविधता का प्रतीक है। यहां उभरती और विकसित अर्थव्यवस्थाएं एक साथ बैठकर दुनिया की सबसे जटिल समस्याओं का समाधान ढूंढती हैं।
सपने और चुनौतियां
हर साल एक नई अध्यक्षता मंच की प्राथमिकताएं तय करती है। भारत ने 2023 में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और जलवायु वित्त पर जोर दिया, तो ब्राजील 2024 में सामाजिक समावेश और विकासशील देशों की आवाज़ उठाने पर केंद्रित है।
लेकिन इतनी विविधताओं के साथ सहमति बनाना आसान नहीं। जलवायु संकट जैसे मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद अक्सर प्रगति में बाधा डालते हैं।
उम्मीदों की रोशनी
G20 की सफलता की कहानियां भी कम नहीं। 2008 के वित्तीय संकट में $4 ट्रिलियन की मदद से उसने दुनिया को बड़ी मंदी से बचाया। 2024 में, रियो शिखर सम्मेलन में, अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने और वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए नए संकल्प लिए गए।
आगे का रास्ता
आज G20 का सफर केवल आर्थिक नीतियों तक सीमित नहीं। इसके निर्णय छोटे किसानों, व्यापारियों, और छात्रों की ज़िंदगी में बदलाव ला रहे हैं। लेकिन अब यह मंच खुद से एक बड़ा सवाल पूछ रहा है—क्या वह वैश्विक जरूरतों और अपेक्षाओं पर खरा उतर पा रहा है?