बिहार (Bihar) के एक ऐसे लड़के की कहानी जिसने देश में राजनीति करने और चुनाव लड़ने के तौर-तरीक़े को बदल कर रख दिया। आख़िर उस लड़के में ऐसी क्या क़ाबिलियत थी कि खुद नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने उस लड़के को अमेरिका से बुला लिया।
दरअसल, बात 2010-11 की है वह लड़का अमेरिका जैसे देश यूएन (UN) में नौकरी कर रहा होता है। मैं यहाँ बार-बार लड़का शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ कि तब उस लड़के की उम्र महज़ 32 से 33 साल के क़रीब रही होगी।
वह लड़का यूएन में नौकरी के दौरान भारत के गुजरात के अलावा अन्य तीन राज्यों में कुपोषण के मौजूदा हालात पर आर्टिकल लिखता है। लेकिन यह बात गुजरात के उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के आँखों में नागवर गुजरती है। और कुछ ही दिन गुजरे होते है कि उस लड़के को गुजरात के CMO ऑफिस से फोन आता है।
फोन पर कोई और नहीं बल्की ख़ुद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी होते है, कुछ मिनट की बात-चीत के बाद फोन कटता है। और इसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन जाता है, कि “ख़ुद एक मुख्यमन्त्री ने UN में नौकरी कर रहे लड़के को गुजरात आने का न्योता दिया है।”
दरअसल, उस वक्त नरेंद्र मोदी ने फोन पर बातचीत के दौरान उस लड़के से कहा था, “कि आप यूएन की नौकरी छोड़कर यहां आइये और हमारे साथ मिलकर काम कीजिए, शिकायत क्यों कर रहे हैं।”
पलट कर उस लड़के का जवाब आता है, “ठीक है मैं नौकरी छोड़ दूँगा लेकिन बदले में आप मुझे हायरार्की का हिस्सा नहीं बनाएंगे। मैं आपके साथ सीधे तौर पर काम करूंगा।”
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे मैं किस लड़के की बात कर रहा हूँ, औपचारिकता है इसलिए मैं आपको बता देता हूँ। दरअसल, वह लड़का कोई और नहीं बल्कि प्रशांत किशोर (Prashant kishore) थे।
। जिसे आप और हम आज जन सुराज (Jan Suraj) के संयोजक के रूप में जानते है।

अब इसके आगे की कहानी जानने के लिए हमें कुछ चीजों को बिस्तार में जानना होगा। इसके लिए हम आपको 10 साल पीछे ले चलते है। साल 2014 का समय था। देश में कांग्रेस (congress) के ख़िलाफ़ पिच तैयार हो गई थी, और उनके लगभग सारे खिलाड़ी चोटिल हो गए थे।
उस वक्त बीजेपी फ़्रंट फुट से बैटिंग कर रही थी। और कांग्रेस के अनफिट बॉलर फूलटॉस फेंके जा रहे थे। फिर क्या था… बीजेपी के बैटर हर बॉल बाउंड्री के बाहर भेज रहे थे। उसके बाद जो हुआ वो सारा देश जानता है। लेकिन फिर भी याद दिलाने के लिए बता देता हूँ, तब उस वक्त की बीजेपी ने अपने दम पर आसानी से 282 रनों का आँकड़ा पार कर लिया और वहीं अनफिट कांग्रेस 44 रनों के छोटे स्कोर पर सिमट कर रह गई।
लेकिन क्या आपको पता है? उस वक्त बीजेपी (BJP) के ड्रेसिंग रूम में बैठकर एक लड़का ताली बजा रहा था। दरअसल, वह लड़का कोई और नहीं बल्कि, बीजेपी टीम का कोच था, और राजनीतिक भाषा में कहे तो चुनावी रणनीतिकार था। यहीं से प्रशांत किशोर को पहली बार रणनीतिकार के रूप में पॉपुलैरिटी मिली। इसके बाद यह सिलसिला आगे बढ़ा तो थमने का नाम ही नहीं लिया। प्रशांत किशोर ने देश के लगभग दर्जनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए चुनावी रणनीतिकार के रूप में काम किया और लगभग वह हर बार सफल होते गये या सफलता ख़ुद उनकी चौखट पर आकर उनके कदमों से लिपटती गई। फिर वह दौर भी आया जब प्रशांत किशोर को लगा कि उन्हें चुनावी रणनीतिकार वाले खेल से संन्यास ले लेना चाहिए।
आइए, अब थोड़े शब्दों में संन्यास लेने के पीछे की वजह जान लेते है, इसके लिए आपको फिर हमारे साथ आज से 9 साल पीछे चलना होगा। दरअसल, वर्ष 2015 का समय था। उस समय बिहार की राजनीति में उथल पुथल मची हुई थी, इसकी वजह थी जदयू का बीजेपी के साथ 17 सालों का एलायंस का टूटना और जदयू के आलाकमान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का तेजस्वी यादव (Tejashawi Yadav) से हाथ मिलाना। और फिर पहली बार यहीं से शुरू हुई थी पलटी मार पॉलिटिक्स: ख़ैर अब कहानी को थोड़ा तेज़ी से आगे बढ़ाते है। दरअसल, वह प्रशांत किशोर ही थे जो आपस के घोर विरोधी जेडीयू और आरजेडी को एक मंच पर लेकर आए थे।

वहीं, वर्ष 2015 का समय आ गया था, इधर जेडीयू (JDU) और आरजेडी (RJD) एलायंस में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे। तो उधर पहली बार ही बीजेपी को बिहार में उम्मीद जगी थी, कि वह इस बार अपने दम पर बहुमत पा लेगीं और उसको अपना मुख्यमंत्री मिल जाएगा। जो कभी बिहार के इतिहास में हुआ नहीं था।
अब उम्मीद जगने के पीछे की वजह शॉर्ट में जान लेते है। दरअसल, रिकॉर्ड जीत के साथ नरेंद्र मोदी देश के नए-नवेले प्रधानमंत्री बने थे। उनकी पॉपुलैरिटी हिन्दी भाषी राज्यों में सातवें आसमान पर थी।
फिर क्या था, बिहार में चुनाव का पीच तैयार हो गया था। नई एलायंस जदयू-आरजेडी यानी, महागठबंधन का सामना बीजेपी कर रही थी। इस बार चुनाव पीएम का नहीं सीएम का था। लेकिन बीजेपी बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही थी।
इस बार बीजेपी के ख़िलाफ़ महागठबंधन का चौका-छक्का लग रहा था। और फिर से एक शख़्स ड्रेसिंग रूम में बैठकर ताली बजा रहा था। लेकिन इस बार ड्रेसिंग रूम बदल गया था, जिस ड्रेसिंग रूम में बैठकर शख़्स ताली बजा रहा था, वह बीजेपी का नहीं बल्कि महागठबंधन का था। शख़्स वहीं था,किरदार वहीं थे, बस इस बार कहानी बदल गई थी।
खेला ख़त्म हो गया था, नतीजे महागठबंधन के पक्ष में आ चुके थे और एक बार फिर बिहार का बागडोर नीतीश कुमार के हाथों में था। नीतीश कुमार के नज़र में इस जीत का हीरो प्रशांत किशोर बन गए थे जिन्होंने पूरे चुनाव में पर्दे के पीछे से काम किया था।
यह राजनीतिक घटना 2015 की थी अब हम आपको बीच में स्किप कर के सीधा 2018 में ले चलते है। तब तक नीतीश कुमार के priority लिस्ट में प्रशांत किशोर का नाम शुमार हो गया था। फिर इसी साल प्रशांत किशोर की राजनीति में एंट्री होती है, एंट्री दिलाने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होते है।

प्रशांत किशोर की राजनीति में एंट्री बड़ी थी, बड़ी इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि उन्हें सीधा जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक देश में राजनीति ने करवट ले ली। बीजेपी साल 2019 के दिसंबर महीने में सीएए (CAA) लेकर आई जिसके कारण देशभर में बवाल मच गया।
सीएए को लेकर देश की तमाम पार्टियाँ दो हिस्से में बंट गई थीं, इसमें एक पार्टी जेडीयू थी जो फिर से वापस बीजेपी में शामिल हो गई थी और अब बीजेपी के द्वारा लाए गए सीएए का समर्थन कर रही थी। बस यहीं बात प्रशांत किशोर की आँखों में चुभ गई और वे जदयू के ख़िलाफ़ हो गए।
दरअसल, प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी के रुख के खिलाफ जाते हुए ट्वीट किया था।
उन्होंने ट्वीट में लिखा था, “बहुमत से संसद में नागरिकता संशोधन कानून पास हो गया। न्यायपालिका के अलावा अब 16 गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों पर भारत की आत्मा को बचाने की जिम्मेदारी है, क्योंकि ये ऐसे राज्य हैं, जहां इसे लागू करना है।” उन्होंने आगे लिखा, “तीन मुख्यमंत्रियों (पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल) ने सीएबी और एनआरसी को नकार दिया है और अब दूसरे राज्यों को अपना रुख स्पष्ट करने का समय आ गया है।”
फिर क्या था, इस ट्वीट के कुछ ही दिनों बाद प्रशांत किशोर से इस्तीफा ले लिया गया। अब वापस वहीं ले चलते हैं जहां आपको थोड़ी देर पहले छोड़ा था। यानी, जदयू से इस्तीफ़े के बाद प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार के रूप में सिर्फ़ ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) के लिए काम किया और उन्होंने इस फ़ील्ड को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

अब एक नई पारी की शुरुआत करने का वक़्त आ गया था, यह वक्त था कुछ बड़ा और अलग करने का। उन्होंने ठान लिया था कि ना ही “मैं अब किसी पार्टी का पार्ट बनकर काम करूँगा और ना ही किसी पार्टी को चुनाव जिताने के लिए काम करूँगा। अबकि बार काम करूँगा अपने लिए,अपनों के लिए और अपनी बिहार की मिट्टी के लिए।”

फिर वह समय आ ही गया जिसे प्रशांत किशोर को बखूबी इंतजार था। उन्होंने वर्ष 2022 में 2 अक्टूबर यानी, गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) के दिन बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले से 3500 किलोमीटर लम्बी पदयात्रा की शुरुआत की। इस पदयात्रा का मकसद बिहार के लोगों से कंनेक्ट होना और स्वयं की नई पार्टी बनाने का था। अब पदयात्रा लगभग ख़त्म होने वाला है और आने वाली 2 अक्टूबर 2024 को प्रशांत किशोर की नई पार्टी के नाम का एलान होने वाला है