पिछले महीने, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने तीन कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने की अनुमति दी। यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) द्वारा उनकी पत्नी पार्वती को विजय नगर के पॉश इलाके में आवंटित की गई जमीन में कथित अनियमितताओं से जुड़ा है। अब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने **भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA)** की धारा 17A के तहत इस मंजूरी को बरकरार रखा है, जिससे सिद्धारमैया के खिलाफ MUDA मामले में जांच की जा सकेगी।
हालांकि, अदालत ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 218 के तहत अभियोजन के लिए दी गई मंजूरी को खारिज कर दिया है। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री को अस्थायी राहत प्रदान की थी।
धारा 17A (PCA) क्या है?
धारा 17A सार्वजनिक अधिकारियों को सुरक्षा प्रदान करती है, जिसके तहत किसी भी भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू करने से पहले सक्षम प्राधिकारी (जैसे राज्यपाल या राष्ट्रपति) से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होता है। इसका उद्देश्य बेवजह या राजनीतिक कारणों से प्रेरित जांचों को रोकना है। सिद्धारमैया के मामले में, MUDA द्वारा उनकी पत्नी को दी गई जमीन में अनियमितताओं के आरोपों के चलते राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद अब भ्रष्टाचार की जांच आगे बढ़ सकती है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय जल्द ही इस मामले में अपना निर्णय सुनाने वाला है।