साइबर अपराधों का नया तरीका “डिजिटल अरेस्ट” तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिससे बड़े-बूढ़े लोग विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। इस प्रक्रिया में अपराधी खुद को पुलिस या किसी अन्य सरकारी अधिकारी बताकर पीड़ितों को धमकी देते हैं, जिससे वे डरकर पैसे ट्रांसफर कर देते हैं।
डिजिटल अरेस्ट क्या है?
- परिभाषा: डिजिटल अरेस्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अपराधी पीड़ित को झूठे आरोपों में फंसाने की धमकी देकर पैसे वसूलते हैं। यह आमतौर पर वीडियो कॉल के माध्यम से किया जाता है, जहाँ पीड़ित को “गिरफ्तार” होने का डर दिखाया जाता है
- उदाहरण: हाल ही में लखनऊ में एक डॉक्टर से 2.81 करोड़ रुपये की ठगी की गई, जबकि एक रिटायर प्रोफेसर से 12 लाख रुपये वसूले गए
कैसे कार्य करते हैं साइबर अपराधी?
- धमकी और डर: अपराधी अक्सर फोन पर पीड़ित को बताते हैं कि उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज है और अगर वे सहयोग नहीं करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस डर का फायदा उठाकर वे पैसे मांगते हैं
- तकनीकी साधन: कई बार ये अपराधी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके आपत्तिजनक सामग्री बनाते हैं, जिससे पीड़ित को ब्लैकमेल किया जा सके
सुरक्षा उपाय
- संकोच न करें: अगर किसी अज्ञात नंबर से कॉल आए, तो उसे रिसीव न करें और न ही किसी लिंक पर क्लिक करें।
- पुष्टि करें: यदि कोई खुद को पुलिस अधिकारी बताकर आपको धमकी दे रहा है, तो तुरंत संबंधित थाने से संपर्क करें।
- बैंक जानकारी साझा न करें: कभी भी बैंक कर्मियों के नाम पर मांगी गई व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें
ठगी होने पर क्या करें?
यदि आप ठगी का शिकार हो जाते हैं:
तुरंत स्थानीय पुलिस को सूचित करें।
अपने बैंक को जानकारी दें और खाते को फ्रीज़ कराने की कोशिश करें
यह स्थिति गंभीर है और विशेष रूप से बुजुर्गों के लिए खतरनाक हो सकती है। सतर्क रहना और सही जानकारी रखना इस समस्या से बचने का सबसे अच्छा तरीका है।