भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में लेडी जस्टिस की एक नई और अनोखी प्रतिमा का अनावरण किया है, जो न केवल परंपरा से हटकर है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों को भी प्राथमिकता देती है। आइए, इस नई प्रतिमा के प्रमुख बिंदुओं पर नज़र डालते हैं:
आंखों की पट्टी का हटना
परंपरा से बदलाव: पारंपरिक लेडी जस्टिस को आंखों पर पट्टी बांधे दिखाया जाता था, जो निष्पक्षता का प्रतीक है। नई प्रतिमा में यह पट्टी हटा दी गई है, जिससे यह संदेश मिलता है कि “न्याय अंधा नहीं है” और यह समाज की वास्तविकताओं को देखता है।
तलवार के स्थान पर संविधान
संविधान का प्रतीक: नई प्रतिमा में लेडी जस्टिस तलवार नहीं, बल्कि भारतीय संविधान धारण किए हुए हैं। यह बदलाव न्यायपालिका की यह प्रतिबद्धता दर्शाता है कि वे अधिकारों और न्याय को प्राथमिकता देते हैं, न कि केवल दंडात्मक प्राधिकार को।
भारतीय सांस्कृतिक पहचान
साड़ी में नया रूप: लेडी जस्टिस अब साड़ी पहने हुए हैं, जो भारतीय सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है। यह उपनिवेशीय प्रभावों से दूर जाने और समकालीन भारतीय मूल्यों को अपनाने का प्रतीक है।
. तराजू की बरकरारी
न्याय का संतुलन: लेडी जस्टिस के दाहिने हाथ में तराजू को बरकरार रखा गया है, जो न्यायालयों द्वारा सबूतों और तर्कों के संतुलन को दर्शाता है। यह सुनिश्चित करता है कि न्याय हमेशा समान रूप से प्रदान किया जाए।
महत्व
यह नई प्रतिमा मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की एक व्यापक पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत के न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाना है। उन्होंने कहा, “कानून अंधा नहीं है; यह सभी को समान रूप से देखता है,” जो एक ऐसे न्याय प्रणाली की वकालत करता है जो समावेशी और संवैधानिक सिद्धांतों में निहित हो।
नई लेडी जस्टिस की प्रतिमा सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीशों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई है, जो इस evolving legal identity का एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह प्रतिमा यह याद दिलाती है कि न्याय का अर्थ केवल दंड नहीं है, बल्कि अधिकारों की रक्षा और समाज की भलाई भी है।