भारत, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है, लंबे समय से शरणार्थियों और प्रवासियों का गंतव्य रहा है। यह विविधता और सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। दशकों से, भारत ने विभिन्न देशों से आने वाले लाखों शरणार्थियों को अपने देश में शरण दी है। तिब्बत, श्रीलंका, अफगानिस्तान, और बांग्लादेश जैसे देशों से आने वाले शरणार्थियों के लिए यह देश एक सुरक्षित ठिकाना साबित हुआ है। लेकिन हाल के वर्षों में एक नई प्रवृत्ति सामने आई है, जिसमें भारतीय नागरिक खुद विदेशों में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं।
यह प्रवृत्ति भारत सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है। विदेश मामलों के राज्य मंत्री ने हाल ही में राज्यसभा में इस मुद्दे पर सरकार की चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि कुछ भारतीय नागरिक, जो विदेशों में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं, भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था की आलोचना को अपनी शरण पाने की प्रक्रिया का हिस्सा बना रहे हैं। उनका मानना है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, जहां नागरिकों के अधिकार संरक्षित हैं और शिकायतों के समाधान के लिए कानूनी तंत्र मौजूद है, ऐसे कदम अनावश्यक हैं।
हालांकि, यह समस्या केवल भारतीय नागरिकों की आलोचना या उनकी नीतियों तक सीमित नहीं है। इसके पीछे कई गहरे और बहुआयामी कारण हैं, जिनमें सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक कारक शामिल हैं। इन कारणों को समझना इस जटिल समस्या का समाधान निकालने के लिए आवश्यक है।
भारतीय नागरिक क्यों मांग रहे हैं शरण?
पिछले कुछ वर्षों में, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, और यूरोपीय देशों जैसे पश्चिमी देशों में भारतीय नागरिकों द्वारा शरण के लिए आवेदन करने की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन नागरिकों का दावा है कि वे अपने देश में उत्पीड़न, भेदभाव, और हिंसा का सामना कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति विभिन्न कारकों से प्रेरित है:
1. धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न
धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों का शोषण भारतीय नागरिकों के विदेश में शरण लेने के सबसे आम कारणों में से एक है। भारत की जनसंख्या में विविधता होने के बावजूद, सामाजिक असमानता और भेदभाव की घटनाएँ व्यापक हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, मुसलमान, ईसाई, सिख, और एलजीबीटीक्यू समुदाय जैसे अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएँ बढ़ी हैं। चरमपंथी समूहों द्वारा की गई हिंसा, घृणा अपराधों, और सामाजिक बहिष्कार के चलते इन समुदायों ने अपनी सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है।
भारत की कानूनी प्रणाली में सुधार के बावजूद, कई बार पीड़ितों को न्याय मिलने में वर्षों लग जाते हैं। इस दौरान, उत्पीड़न झेल रहे व्यक्ति या समुदाय अपने लिए सुरक्षित स्थान की तलाश करते हैं, और ऐसे में विदेशों में शरण लेना एक व्यवहारिक विकल्प बन जाता है।
2. राजनीतिक उत्पीड़न
भारत में राजनीतिक असहमति और आलोचना का दमन एक गंभीर समस्या बन गया है। वर्तमान में सत्तारूढ़ दल की नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकार, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अक्सर निशाना बनाए जाते हैं।
कई बार, इन आलोचकों को धमकियाँ दी जाती हैं, उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज किए जाते हैं, और उनकी स्वतंत्रता को बाधित किया जाता है। सरकार और प्रशासन पर इन घटनाओं में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं, जिससे यह धारणा बनती है कि भारत में असहमति का अधिकार तेजी से खतरे में है।
राजनीतिक असहमति के लिए उपयुक्त माहौल की कमी कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सामाजिक सुधारकों को विदेशों में शरण लेने के लिए मजबूर करती है। उनके लिए, यह कदम अपने जीवन को सुरक्षित रखने और स्वतंत्र रूप से काम करने का एकमात्र तरीका बन जाता है।
3. आर्थिक अवसरों की कमी
भारत में बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, और सीमित अवसरों ने भी विदेशों में शरण लेने के मामलों को बढ़ावा दिया है।
हालांकि आर्थिक कारणों से विदेश जाना शरण के लिए आवेदन करने का प्रत्यक्ष कारण नहीं हो सकता, लेकिन कई लोग बेहतर जीवन स्तर और स्थिरता की तलाश में विदेशों का रुख करते हैं। अमेरिका और यूरोप में मजबूत सामाजिक सुरक्षा, बेहतर शिक्षा प्रणाली, और रोजगार के अवसर उन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनते हैं, जो भारत में इन सुविधाओं की कमी महसूस करते हैं।
4. स्मगलिंग नेटवर्क का योगदान
भारत से शरणार्थी बनने वालों के लिए एक और महत्वपूर्ण पहलू अवैध स्मगलिंग नेटवर्क का होना है। ये नेटवर्क भारतीय नागरिकों को अमेरिका, कनाडा, या यूरोप तक पहुँचाने में मदद करते हैं।
ऐसे मामलों में, लोग अक्सर भारी शुल्क देकर इन नेटवर्क का सहारा लेते हैं। ये नेटवर्क उन्हें विदेशों में सुरक्षित पहुँचाने का आश्वासन देते हैं, लेकिन कई बार उन्हें जोखिमपूर्ण और खतरनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
5. बिगड़ती सामाजिक स्थिति
भारत में कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ सामाजिक स्थिति बिगड़ रही है। दलित, आदिवासी, और अन्य हाशिए के समुदायों को हिंसा, भेदभाव, और शोषण का सामना करना पड़ता है।
कई घटनाएँ, जैसे सांप्रदायिक दंगे, जाति-आधारित हिंसा, और ऑनर किलिंग, यह दर्शाती हैं कि भारतीय समाज में अब भी गहरी समस्याएँ मौजूद हैं। यह बिगड़ती सामाजिक स्थिति नागरिकों को विदेशों में शरण लेने के लिए प्रेरित करती है।
भारत सरकार की नीति और शरणार्थियों पर दृष्टिकोण
भारत सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लिया है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि शरणार्थियों और प्रवासियों के मामले में भारत के पास कोई ठोस कानूनी ढाँचा नहीं है।
कानूनी ढाँचे की कमी
भारत 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन या 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इसका अर्थ है कि भारत पर शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
शरणार्थियों को अन्य विदेशी नागरिकों के समान ही देखा जाता है, और उनके पास कोई विशेष कानूनी अधिकार नहीं होते। इस स्थिति से शरणार्थियों को सामाजिक सुरक्षा और सेवाओं तक पहुँचने में कठिनाई होती है।
विदेशी शरणार्थियों के साथ संपर्क का अभाव
सरकार का कहना है कि विदेशों में शरण लेने वाले भारतीय नागरिकों के साथ संपर्क बनाना चुनौतीपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के गोपनीयता कानून भारतीय सरकार को ऐसे नागरिकों की जानकारी प्राप्त करने से रोकते हैं।
स्वदेश लौटने वाले शरणार्थियों के लिए सहायता
सरकार उन नागरिकों को कुछ हद तक सहायता प्रदान करती है, जो विदेशों में शरण लेने में विफल होकर भारत लौटते हैं। लेकिन यह सहायता सीमित होती है और इसमें सुधार की आवश्यकता है।
आलोचना और छवि का सवाल
भारत सरकार का यह भी मानना है कि विदेशों में शरण पाने के लिए नागरिक अक्सर भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली और कानून-व्यवस्था की आलोचना करते हैं। यह न केवल देश की छवि को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शर्मिंदगी का कारण बनता है।
भारत को इस समस्या का समाधान कैसे करना चाहिए?
शरण लेने के मामलों में वृद्धि भारत के लिए एक चेतावनी है कि उसे अपने नागरिकों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- कानूनी ढाँचा तैयार करना
भारत को शरणार्थियों और प्रवासियों के लिए एक मजबूत और समग्र कानूनी ढाँचा तैयार करना चाहिए। इससे शरणार्थियों के अधिकार सुनिश्चित किए जा सकते हैं और उनकी स्थिति को लेकर स्पष्टता बढ़ेगी। - सामाजिक सुरक्षा में सुधार
धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर सुरक्षा उपाय लागू करना जरूरी है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के समान सुरक्षा प्रदान करे। - आर्थिक अवसरों का विस्तार
बेरोजगारी को कम करने और नागरिकों को बेहतर आर्थिक अवसर प्रदान करने के लिए नई नीतियाँ लागू की जानी चाहिए। - शासन व्यवस्था में पारदर्शिता
राजनीतिक असहमति और आलोचना को कुचलने की बजाय, सरकार को लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे नागरिकों का विश्वास बढ़ेगा और शरण लेने की घटनाएँ कम होंगी। - अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना
विदेशी सरकारों के साथ मिलकर उन भारतीय नागरिकों की पहचान करना और उनकी सहायता करना महत्वपूर्ण है, जो शरण पाने में विफल होते हैं और स्वदेश लौटने की प्रक्रिया में होते हैं।