नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है, जो दस दिनों तक मनाया जाने वाला एक भव्य उत्सव है। यह पर्व हर साल श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आज इस महापर्व की शुरुआत माँ शैलपुत्री की पूजा से होगी, जो कि राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री हैं।
माँ शैलपुत्री का जन्म
माँ शैलपुत्री का जन्म देवी सती के रूप में हुआ था, जो राजा दक्ष की पुत्री थीं। सती ने भगवान शिव से विवाह किया, लेकिन उनके पिता दक्ष ने शिव को निमंत्रित नहीं किया जब उन्होंने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया। सती ने अपने पति शिव के अपमान को सहन नहीं किया और यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया।सती के इस बलिदान के बाद, उन्होंने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के घर पुनर्जन्म लिया, जहाँ उनका नाम शैलपुत्री रखा गया। इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया और शक्ति का प्रतीक बन गईं।
पूजा विधि
आज के दिन भक्तगण माँ शैलपुत्री की आराधना करेंगे। पूजा की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जिसमें एक कलश स्थापित किया जाता है। इसके बाद, भक्तगण माँ को सफेद फूल, फल और मिठाइयाँ अर्पित करते हैं। माँ शैलपुत्री को त्रिशूल और कमल का फूल पकड़े हुए दर्शाया जाता है, और उनकी सवारी नंदी (बैल) है।
महत्व
माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों को शक्ति, समृद्धि और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। यह दिन नवरात्रि के पहले दिन का प्रतीक है, जो अच्छे पर बुराई की जीत का संकेत देता है। माँ शैलपुत्री की आराधना से जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार होता है।इस प्रकार, नवरात्रि का यह पर्व हमें माँ शैलपुत्री से प्रेरणा लेने और अपने जीवन में शक्ति एवं साहस भरने का अवसर प्रदान करता है!