झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज अस्पताल की नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में शुक्रवार रात अचानक लगी आग ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हादसे में 10 नवजात बच्चों की जान चली गई और 16 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। हादसे की वजह माना जा रहा है कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में शॉर्ट सर्किट से आग भड़की।
धुएं में घिरा वार्ड और नन्हीं जिंदगियों की लड़ाई
जब आग लगी, तब NICU में 54 बच्चे भर्ती थे। चारों ओर धुआं और चीख-पुकार का माहौल था। माता-पिता अपने बच्चों को बचाने के लिए दौड़ पड़े। इसी दौरान एक पिता, कृपाल सिंह, अपनी बेटी को दूध पिलाने के लिए वार्ड में गए थे। उन्होंने जैसे ही आग देखी, तो बिना सोचे-समझे बच्चों को बचाने में जुट गए।
कृपाल ने बताया, “धुआं हर तरफ था। पहचानना मुश्किल था कि कौन सा बच्चा किसका है। मैं और कुछ नर्सों ने करीब 20 बच्चों को बाहर निकाला। लेकिन… मेरी जुड़वां बेटियां… वे बच नहीं पाईं।” उनकी आँखें भर आईं।
परिवारों का गुस्सा और अस्पताल के खिलाफ प्रदर्शन
इस त्रासदी के बाद अस्पताल के बाहर गुस्साए परिवारों ने प्रदर्शन किया। आरोप लगाए जा रहे हैं कि आग लगने के दौरान फायर अलार्म काम नहीं कर रहे थे। सवाल उठ रहे हैं कि क्या अस्पताल ने सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए थे।
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की संवेदनाएं
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रत्येक मृतक के परिवार को ₹5 लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को “दिल दहला देने वाला” बताया और इसकी गहन जांच की मांग की।
जांच जारी, लेकिन सवाल अनगिनत
सरकार ने घटना की जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी बनाई है, जो एक हफ्ते में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। पर इस घटना ने देशभर में अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह कहानी केवल एक त्रासदी की नहीं है, बल्कि उन माता-पिता की भी है जो अपनी नन्हीं जिंदगियों को बचाने के लिए सबकुछ दांव पर लगा देते हैं। कृपाल सिंह जैसे लोग दिखाते हैं कि इंसानियत किस हद तक जा सकती है। लेकिन, यह घटना एक बड़ा सवाल भी छोड़ जाती है—क्या हमारे अस्पताल मासूमों की सुरक्षा के लिए तैयार हैं?