Sunday, June 8, 2025
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छठ पूजा: आस्था, श्रद्धा और बिहार की गौरवमयी परंपरा

भारत में हर साल मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में छठ पूजा का विशेष स्थान है। यह त्योहार खासतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा का आरंभ “नहाय-खाय” के साथ हो रहा है, जो इस चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत है। छठ पूजा सूर्य देवता और छठी माई की पूजा के रूप में श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुकी है।

छठ पूजा की उत्पत्ति और महत्व

छठ पूजा की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन सनातन परंपराओं में हुई थी, और यह सूर्य देवता के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। यह पूजा खासकर उन लोगों के लिए होती है जो कृषि आधारित जीवन जीते हैं, क्योंकि सूर्य देवता ही जीवों को जीवन देने वाले ऊर्जा के स्रोत माने जाते हैं।

कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी और भगवान श्री कृष्ण ने छठ पूजा की थी, ताकि पांडवों को विजय प्राप्त हो और उनका परिवार सुख-समृद्धि से भरा रहे। इसके साथ ही, यह पूजा प्राचीन वेदों में भी उल्लेखित है, जो इसके गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।

बिहार में छठ पूजा की विशेष भूमिका

हालांकि छठ पूजा अब पूरे भारत में मनाई जाती है, लेकिन बिहार में इस पर्व का अद्वितीय महत्व है। बिहार में छठ पूजा एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व यहां की लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। बिहार के लोग विशेष रूप से सूर्य देवता और छठी माई की पूजा करते हुए अपने परिवार की समृद्धि, सुख और स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

बिहार में छठ पूजा की परंपरा सदियों पुरानी है। यहां के लोग नदी, तालाब या गंगा किनारे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पूजा करते हैं। यह पूजा जितनी धार्मिक है, उतनी ही सामूहिकता और एकता का प्रतीक भी है। लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं, आपस में मिठाइयाँ और फल बाँटते हैं, और इस दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ करते हैं।

चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा

छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो इस पर्व का पहला दिन है। इस दिन, भक्त अपने घरों में पूजा करने के लिए शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखते हुए स्नान करते हैं। इसके बाद, वे सात्विक आहार खाते हैं, जिसमें खासतौर पर चने की दाल, चिउड़े, और कद्दू आदि होते हैं। यह दिन इस पर्व की शुरुआत का संकेत है।

दूसरे दिन को लोहंडा कहते हैं, जिसमें श्रद्धालु उपवासी रहते हैं और सूर्यदेव के लिए विशेष प्रसाद तैयार करते हैं। तीसरे दिन को खरना कहते हैं, जब उपवासियों द्वारा सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखा जाता है और सूर्यास्त के बाद विशेष पकवानों का भोग चढ़ाया जाता है।

अंतिम दिन, जो कि पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, संगीत और अर्ज्या (सूर्य को अर्घ्य देने) का होता है। इस दिन, श्रद्धालु नदी या तालाब के किनारे एकत्र होते हैं और सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान वे अपने परिवार की सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

छठ पूजा का आधुनिक रूप और वैश्विक प्रसार

आज के समय में छठ पूजा केवल बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और भारतीय डायस्पोरा में भी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में छठ पूजा के बड़े आयोजन होते हैं। विदेशों में भी जहां भारतीय समुदाय बसते हैं, वहां भी यह पर्व श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है।

भारत में आजकल छठ पूजा पर्यावरण की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण पर्व बन चुकी है, क्योंकि इस दिन लोग नदियों और तालाबों के किनारे साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा का संदेश देते हैं। इसके अलावा, यह पूजा आत्मिक शुद्धता और साधना का प्रतीक बन चुकी है।

नहाय-खाय से शुरू हुआ उत्सव

आज से छठ पूजा का आगाज हो चुका है। नहाय-खाय के साथ ही यह पर्व पूरे बिहार और आसपास के इलाकों में शुरू हो चुका है। परिवार के लोग एक साथ मिलकर इस दिन को विशेष बनाने की तैयारी में जुटे हैं। घाटों पर पूजा की तैयारियाँ हो रही हैं, और भक्तगण नदी किनारे एकत्र होकर सूर्य देवता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए तैयार हैं।

इस अवसर पर पूरे बिहार में एक अद्भुत वातावरण होता है, जिसमें श्रद्धा, प्रेम और सांस्कृतिक सौहार्द्र की झलक मिलती है। नदियों के किनारे सजे हुए दीपक, गाने-बजाने का माहौल और एकता का संदेश इस पर्व को और भी खास बना देते हैं।

जैसे-जैसे छठ पूजा की रौनक बढ़ेगी, पूरे भारत और दुनिया भर में इसे मनाने वालों की संख्या बढ़ती जाएगी। यह पर्व बिहार की संस्कृति, श्रद्धा और आस्था का जीवित प्रमाण है, जो हर साल अपनी धूमधाम के साथ आता है।

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