नवरात्रि के तीसरे दिन, श्रद्धालु माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हैं, जो देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप मानी जाती हैं। यह दिन गहरे आध्यात्मिक महत्व का होता है, जो आंतरिक ऊर्जा के रूपांतरण और जीवन में साहस, शांति, और शक्ति के संचार का प्रतीक है।
माँ चंद्रघंटा: योद्धा देवी
माँ चंद्रघंटा को एक योद्धा देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन उनका चेहरा शांति और सौम्यता से भरा होता है। उनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र (चंद्र) स्थित होता है, जो उनकी शांति और सुरक्षा का प्रतीक है। माँ चंद्रघंटा शेर की सवारी करती हैं और उनके दस हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं, जो बुराई को नष्ट करने और धर्म की रक्षा करने का प्रतीक हैं। उनके इस रूप से यह संदेश मिलता है कि हमें नकारात्मकता का सामना शांति और शक्ति के साथ करना चाहिए।
तीसरे दिन का महत्व: साहस और शांति
नवरात्रि के तीसरे दिन का महत्व आंतरिक शक्ति और आत्म-अनुशासन से जुड़ा है। यह दिन हमें भय और अज्ञानता की बाधाओं को दूर करने की प्रेरणा देता है। भक्त माँ चंद्रघंटा से साहस, शांति और मानसिक स्थिरता की कामना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा और ध्यान से नकारात्मकता दूर होती है और मन में शांति का संचार होता है। माँ चंद्रघंटा हमें यह सिखाती हैं कि जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए भी हमें शांति और धैर्य बनाए रखना चाहिए।
आध्यात्मिक जागरूकता और चक्र संतुलन
माँ चंद्रघंटा मणिपुर (सोलर प्लेक्सस) चक्र से जुड़ी होती हैं, जो व्यक्तिगत शक्ति, आत्म-विश्वास, और रूपांतरण का प्रतीक है। उनकी पूजा से इस चक्र को संतुलित किया जा सकता है, जिससे आत्मिक ऊर्जा और इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है। यह दिन आध्यात्मिक जागरूकता की शुरुआत का संकेत देता है, जहाँ साधक आंतरिक शांति और उद्देश्य को पाने की यात्रा शुरू करते हैं।
पूजा विधि और भोग
इस दिन भक्त माँ चंद्रघंटा को दूध, दूध से बने मिठाई, और खीर का भोग अर्पित करते हैं। सफेद रंग इस दिन का प्रमुख रंग है, जो शुद्धता और शांति का प्रतीक है। लोग माँ से समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य, और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
निष्कर्ष
नवरात्रि का तीसरा दिन, जो माँ चंद्रघंटा को समर्पित है, हमें आंतरिक साहस को जगाने, जीवन की चुनौतियों का सामना करने, और अशांत परिस्थितियों में भी शांति बनाए रखने की प्रेरणा देता है। माँ चंद्रघंटा की पूजा से हम सीखते हैं कि सच्ची शक्ति सिर्फ बाहरी युद्ध से नहीं आती, बल्कि मन की स्थिरता और धैर्य से मिलती है।
यह दिन न केवल भक्तों के लिए आध्यात्मिक रूप से जागरूकता बढ़ाने वाला होता है, बल्कि उन्हें जीवन में साहस और शांति से आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है।