रांची: झारखंड में 2024 के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और उसके सहयोगियों के लिए बड़ी जीत की कहानी लिखी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने 81 में से 57 सीटें जीतकर सरकार बनाने का रास्ता साफ कर लिया है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी केवल 23 सीटों पर सिमट गए।
1. जेएमएम का दबदबा
चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में कांटे की टक्कर की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन नतीजों ने सबको चौंका दिया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जिन पर इस साल की शुरुआत में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे थे, ने अपनी लोकप्रियता साबित की। उनकी पार्टी ने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जोरदार प्रदर्शन किया।
2. मतदाताओं का उत्साह
चुनाव में 67.74% का रिकॉर्ड मतदान हुआ, जो पिछली बार की तुलना में अधिक था। खास बात यह रही कि महिलाओं की भागीदारी में बड़ा इजाफा देखा गया। कई क्षेत्रों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से भी अधिक रहा।
3. सोरेन की जनहितकारी नीतियों का असर
जेएमएम ने अपने चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री मइया सम्मान योजना जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी। यह योजना महिलाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी ने सांस्कृतिक गर्व और कल्याण पर जोर दिया, जिसने मतदाताओं के दिलों को छुआ।
4. भाजपा की चुनौतियां
भाजपा ने अपने अभियान में हिंदुत्व और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाया, लेकिन यह रणनीति काम नहीं आई। स्थानीय स्तर पर शासन और विकास के सवालों के बीच भाजपा मतदाताओं को जोड़ने में विफल रही।
परिणामों के मायने
हेमंत सोरेन की वापसी झारखंड में स्थिरता और आदिवासी अधिकारों पर जोर देने वाली सरकार की ओर इशारा करती है। उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और क्षेत्रीय राजनीति पर पकड़ ने जेएमएम को राज्य में मजबूत आधार दिया है।
यह जीत सिर्फ सोरेन के लिए व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि झारखंड की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की अहम भूमिका को भी रेखांकित करती है। मतदाता अब स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय राजनीति पर तरजीह देते नजर आ रहे हैं।
जश्न के बीच, जेएमएम सरकार पर अब जनता की उम्मीदों को पूरा करने की जिम्मेदारी है। बेरोजगारी, आदिवासी कल्याण और आर्थिक विकास जैसे मुद्दे नई सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां होंगे।
झारखंड में इस जीत ने न केवल हेमंत सोरेन के नेतृत्व को मजबूती दी है, बल्कि इंडिया गठबंधन की क्षमता को भी दिखाया है कि वह राष्ट्रीय दलों को क्षेत्रीय राजनीति में मात दे सकते हैं।